Friday, May 10, 2019

To the unseen

I see you - the stoop of your shoulders
like the world is weighing you down.
I hear you - that bite in your voice,
you don’t trust anyone at all.
I see you - the way you fidget,
you just want to break away.
I hear you - the way you laugh
like the world is a joke.
But you don’t know.
You don’t know that I see you.
You don’t know that I hear you.
Because I just smile.
I don’t want you to see me.
Or maybe I do and so I write.

Wednesday, February 13, 2019

डर क्यों लगता है ?

डर लगता है इंसानों से, अपनों से, अनजानों से।
कोशिश की डर को ठुकराने की,
सर उठा कर आगे निकल जाने की।
पर हर बार ये सामने आ खड़ा होता है।
चेहरा अलग पर एहसास वही होता है।
नाउम्मीदी और खालीपन, सब धुंधला जाता है।

ज़िंदगी के इस मेले मे क्या हमसफ़र ज़रूरी है?
क्यों करें भरोसा ? क्यों बांधे उम्मीदें ?
क्यों न ज़िंदगी आसान करें ?
बस खुद पर ही विश्वास करें।

वो कहते हैं के अपने हैं।
पर उनके बाद क्यों अपने लिए कुछ बचता ही नहीं ?
यूँ लगता है के ज़िंदगी उनका दिया उधार है,
जो बस चुकाते जाना है।

ऐसे अपनों से अनजाने ही सही।
हम ढूंढ लेंगे अपनी ज़मीन।
पर यहाँ भी एक दीवार है,
वो उस तरफ और हम इस पार हैं।
बाहर से अंदर की तरफ झांकते हुए
अपने अलग होने का एहसास होता है।
जो हमने कही नहीं वो समझेंगे कैसे?
यूं ख़ामोशी में कहीं ज़िंदगी न बीत जाये।

बस इसी कश्मकश में चले जा रहे हैं
के अकेले चलें या बन जाएं किसी का हिस्सा ?
कहीं अपने आप को भूल तो नहीं जायेंगे ?
इस बात से भी डर लगता है।